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सुधाकर से मुख बानि सुधा मुसकानि सुधा दरसै रदपाँति / देव

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सुधाकर से मुख बानि सुधा मुसकानि सुधा दरसै रदपाँति ।
प्रवाल से पानि मृनाल भुजा कहि देव लता तन कोमल कान्ति ।
नदी त्रिवली कदली युग जानु सरोज से नैन रहे रस माँति ।
छिनौ भरि ऎसी तिया बिछुरे छतिया सियराय कहौ केहि भाँति ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।