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सूरज कौंल (सूरज कुँवर) / भाग 3 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सजैदे बखड्या घोड़ी कांसी का घूंघर,
घोड़ी को पैरेदे मेरी नेओरी की माला।
सजयाले सूरजूतिना सरपेंच कलंकी,
पैर्याले कुंवर तिन बखतरो जामो।
काँघि माँ धर्याले तिन चौंसी को गलेप,
धर्माले बगल तिन, पैनी समशीर
सजीगे सूरजू आज कांठ सी सूरज,
ह्वेगये कुंवर झट घोड़ी को सवारी।
मार्याले घोड़ी को तिन निगुरो कुरडा,
तेरी घोड़ी जै लागी बाला वीं काली बदली।
तेरी घोड़ी पहुँची बाला सूरज मंडल,
तेरी घोड़ी पहुँची गे, बाला वे मेघ मंडल।
तेरी घोड़ी यैगये बाला वीं थाली चौरडी।
पौंछिगे<ref>पहुँच गया</ref> सूरजू आज नागणीं का सेरा<ref>खेत, धान</ref>,
मिलीगे कुंवर त्वीकू हिमा मारछयाल।
त्वीकुणी कुंवर हिमा बुझौंणी बुझौंद,
नागणीं का सेरा बाला चुड़ीणू का घेरा,
मल्यो रंग घोड़ी तेरी धावड़ी लगौंद।
नौ दिन नौ राति रैगे नागिण्यों का घेरा,
बिपदा का मारा जादू गुरु का सुपीना।
रैगउं गुरजी आज चुड़ींण का घेरा,
फूक्याले गुरु न गाड़ी धुनी की बभूत।
चचड़ैकी उठी बालो बबरैकी बीजे,
गाड्याले कुंवर तिन नंगी समशीर,
मार्याले कुंवर तिन रांड कि चुड़ीण।
घोड़ी को सवार पौंछी<ref>पहुँचा</ref> उचां खैटाखाल,
धार मा बैठीक तिन आसण लगाये।
खैटाखाल रौंदी बाला खैट की अछरी<ref>अप्सराएँ</ref>,
बजौण सूरजू बैठी नौसुर बांसुरी:

मुरली की धुन पौछी धार वार पार,
मुरली को सुर पौछी आछरयूं का कान,
नौछमी मुरली बाजी अनमनी भाँति,
डांडि कांठी गूँजी गये मुरली को सुर।
सूणीं सूणीं सुरसौरी बेसुध ह्वेगेना,
को ह बोलू हौंसिया<ref>शौकीन</ref> इनो बंसी को बजैया!
अछरी निमानी यैने सूरजू का पास,
राणियूं को रसिया छैंठे फूलू को हौंसिया।
नौदिन नौराति रैग आछिरयूं की फेरा,
आछिरयूं तैं बाला तब बुझोणी बुझौंद,
मैंन जाणा दगड्यों<ref>साथियों</ref> आज बालुरी भौटन्त,
मैंन लाणा दगडूँयों आज जोतरा को डोला।
मौटेन्त औलू रौलो भी तुम्हारा पास,
पौछिगे सूरजू हुणियों का देश,
एक खुट्यू को राज जौकि बोली निबिगींदी।
फेंक्याले सूरजू तिन पजाबी चुंगटी।
पोड़िगे राक्सु जख मां काली को ज्वाप,
तेरी घोड़ी पहुँची में तब बिषैली कांठी,
नौ दिन ह्वैगेन तब त्वीकू विष लागी गेयै।
एक हड़ सूरजू तेरा किरम पड़ी गेना,
तब जांद सूरजू फेर गुरु का सुपीना
रैगउं गुरु जी आज बिषूली कांठ्यूं।
गाड़ी याला गुरु न संजीवनी विद्या,
हैंसदाज्यूँ दाल<ref>अक्षत</ref> बालों बबरैकि बीज,
तेरी घोड़ी जैलागी गैरी रुंदरी।
तेरी घोड़ी पौछिगे बाला वे बांका भोटन्त,
जै लाग्या कुंवर बालां ताता लूहागढ़।
चान्दनी का चौक बाला घुड़दौड़ लगौंद,

देख्याले सूरजू तिना भावी को बंगला।
नजरु ये गये त्वीकू राणी जोतमाला,
नजरु यैगये बाँकू घोड़ी को सवार।
जाधऊँ हे छोरी स्वारा पूर्व की मोरी,
को बैख यैहोलो मेरी चान्दनी का चौक।
ओडू येजादी मेरी आज स्वारा छोरी,
ल्ही औदी सूरजू मेरा छतीश अवासू।
बैठिगे कुंवर जैकि सुतरी<ref>साफ</ref> पलंग,
त्वी सणी जोतरा बाला बोली मरदी।
तब बैठी पलंग पैली पांसा खेली याला,
गाड़ीने जोतरा तीन हार जीत पांसा।
रांड की जोतरा पैली भोजन दीयाला,
नौ दिन ह्वेगेना मिना भोजन नी जीम्यों।
भोजन जिमै की खेल हार जीत पांसा।
बणैन जोतरा तिन बावन बिजन<ref>व्यंजन</ref>,
निर्पाणी<ref>बिना पानी</ref> की खीर सौर सदबेली घिऊ।
औ बाला सूरजू झट भोजन जीम्याल,
भोजन जीमिकि गाड़े हार जीत पांसा।
गाड़ीन जोतरा तिन हस्ती दाँत पाँसा,
खेलण बैठीगे बाला पांसड्यों को खेल,
खेलद-खेलद नौ दिन ह्वेई गेना।
खेलद-खेलद हारमान होइगे,
बोलद सूरजू भारी प्यास लगीगे।
जाधऊं तू स्वाणीं छोरी जल लेऊ भोरी,
हरगिज नी पिऊँ पाणी छोरी को लयूं।
अपणा हाथ को पाणी मीं तै पिलै याल,
तब लौंद जोतरा भैर<ref>बाहर</ref> जेकी जल भोरी।
झट उठे सूरजू बैठे जीत की तरफ,
पैले-पैले<ref>पहला</ref> को दऊं डाले धरती का नऊं,

दूजो दंऊ डाले पंचदेवों का नऊँ।
तीजो दऊं जीते तिन धन दी दरब,
चौथी दऊं जीते तिन भावी को बंगला।
पांच्चीं दऊं जीते तिना राणी जोतमाला,
जै लाग्ये, जोतरा बालो नौरंग तिवारी।
राणी का आवास मा जांदा छतीस भवन,
पैर्याले जोतरा तिन ल्होसेडो घाघरो।
पैर्याले जोतरा तिन मखमखी आंगी,
धर्याले शिर मा तिन पामड़ी दुशालो।
पाये का पोलियां पैर्या शिर शीसफूल,
तेरा नौ कू सूरजू मिना स्वाँग धरियाले।
यैगये जोतरा तब गगन सोड्यूं पर,
पौछिगे जोतरा जैकि चाँदनी का चौक।
तेरा बाना जोतरा छोड़े नौ लाख कैतुरा,
सजी गये जोतरा तेरो औला सारी डोला।
मार्याले घोड़ा कू तिना निगुरों कुरड़ो,
पोछिगे सूरजू यैको नौ लाख कैतुरा।
तेरी घोड़ी पोंछिगे बाला भीमली बजार,
पौछिगे भीमली बाला जोतरा को डोला।
धर्याले जोतरा राणी छतीसू अवास,
नौलाख कैतुरा तैका मांगल गयेला।
बाजली भीमली आज आनन्द बधाई।
नौरंग तिवारी तख हास बरेंद,
बुलायें सूरजू तिन भुली<ref>छोटी बहन</ref> सूरजी,
घर बौड़ी<ref>लौट कर</ref>ह्वेऊं भुली राजे दैजो ल्हीजा।
दियाले सुरजी त्वीक द्वी बैलों की जोड़ी,
गायूं गोठियार देई बाखुरियों की ताँदी
तू हवेली सूरजू सोंचो सिंहणो को जायो।

शब्दार्थ
<references/>