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सै मशहूर नया नौ दिन और सौ दिन चलै पुराणा / मंगतराम शास्त्री

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सै मशहूर नया नौ दिन और सौ दिन चलै पुराणा
नहीं पुराणा सब किमे आच्छा यू भी सै एक गाणा
 
जितने गीत-संगीत पुराणे खूब सराहे जां सैं
प्यार-मोहब्बत तन्हाई के गीत बजाए जां सैं
पर जो आज नहीं मतलब के वें भी गाए जां सैं
दिखे राजा-राणी के किस्से आदर्श बताए जां सै
जबकि नए जमान्ने का नया हो सै ताणा-बाणा
 
जितनी बात पुराणी कहावत सारी आच्छी नां सैं
कहते माड़ी जात बीर की बिल्कुल साच्ची नां सैं
छोरी हो कूड़े की बोरी ये बात जरा-सी नां सैं
जिसी नीत उसी बरकत बाणी परखी जांची नां सै
आज खोट्टी नीत खरी बरकत हो, यू सै पना-पुआणा
 
ना सब चीज नई आच्छी ना माड़ी सभी पुराणी
ना सब चीज पुराणी आच्छी ना सब नई निमाणी
जात-पात और खाप-गोत की चाल हों माणस-खाणी
लूट-फूट पै टिकी हुई हर चाहिए चीज मिटाणी
बेशक नाम धरम का हो ना चाहिए जहर फलाणा
सै बदलाव जगत का नियम ना घबराणा चहिए
सड़ै पान बिन पाणी बदले, कति ना खाणा चहिए
हंस कै नै परिवर्तन को हमें गळे लगाणा चहिए
लेकिन नए पेड़ की जड़ में खाद पुराणा चहिए
कहै मंगतराम बणावै जिम्मेदारी माणस स्याणा