भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तो हैं आसमाँ के ख़सारे ज़मीन पर / प्रणव मिश्र 'तेजस'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तो हैं आसमाँ के ख़सारे ज़मीन पर
बिछड़े हुए हैं उस पे हमारे ज़मीन पर

सूरत मिली न यार मिला ख़ाकियों के बीच
रहते हैं हम घटा के सहारे ज़मीन पर

ये ज़ुल्फ़ शाम ख़ाब ये सिगरेट का धुआँ
इसके सिवा ख़राब नज़ारे ज़मीन पर

किस से करेगा पेड़ कटी बाँह का गिला
कोई नहीं है जिसको पुकारे ज़मीन पर

जल कर बुझे चराग़ यही पूछते मरे
क्या हम हैं उस ज़मीं के सितारे ज़मीन पर