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हम धरती के टूटे तारे/ रविशंकर पाण्डेय
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'हम धरती के टूटे तारे '
हम धरती के टूटे तारे,
अम्बर अवनी से टूटे तो
क्षितिज भला-क्यों कर स्वीकारे!
घर-परिवार, न रिश्ते नाते
सब हैं , सूरत से कतराते
घर में ही जब , बेघर से हैं
क्यों न भला, दुनिया दुत्कारे!
हम में क्या कुछ ,उर्जा कम है?
बाहों में पूरा दमखम है
फिर क्यों? कृत्रिम उपग्रह के
आगे फिरते हैं ,मारे -मारे!
दे दो धरा का , कोई कोना
मिट्टी को हम , कर दें सोना
सूरज केा , गलबहियाँ लेते
होंगे हम अनमोल सितारे!
अब न हाथ पर हाथ धरेंगे
जड़ पर उल्कापात करेंगे
गिरते दम तक राख न होंगे
बरसेंगे ,बनकर अंगारे!
!!