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हम फूलों की गंध बेचने के अपराधी हैं / ज्ञान प्रकाश आकुल

हम फूलों की गंध बेचने के अपराधी हैं
उनका क्या ?
जो टुकड़ा टुकड़ा उपवन बेच रहे।

सब के आगे शीश झुकाना जिस दिन दिया नकार,
उसी दिवस से हम पर उछले प्रश्नों के अम्बार,
हम तुलसीदल चंद बेचने के अपराधी हैं
उनका क्या?
जो टुकड़ा टुकड़ा आँगन बेच रहे।

अँधियारी रातों में रखते हम चन्दा सा रूप
बादल बनते हम जब जब झुलसाने लगती धूप
बारिश का आनंद बेचने के अपराधी हैं
उनका क्या ?
जो टुकड़ा टुकड़ा सावन बेच रहे।

जिनके घर होता आया आँसू का कारोबार
उन्हें बहुत खलता है यह मुस्कानों का व्यापार
हम मीठे संबंध बेचने के अपराधी हैं
उनका क्या ?
जो टुकड़ा टुकड़ा अनबन बेच रहे।