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हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ / सरदार अंजुम

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हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ

मुस्कुराते ख़्वाब चुनती गुनगुनाती ये नज़र
किस तरह समझे मेरी क़िस्मत की नामंज़ूरियाँ

हादसों की भीड़ है चलता हुआ ये कारवाँ
ज़िन्दगी का नाम है लाचारियाँ मजबूरियाँ

फिर किसी ने आज छेड़ा ज़िक्र-ए-मंजिल इस तरह
दिल के दामन से लिपटने आ गई हैं दूरियाँ