हर रोज़, हर रोज़
वही वही वही
वही दिन आता है
कभी बादलों भरा
कभी चितकबरा,
कभी गेंदे की फुलवारी-सा
वही दिन आता है
सूरज की खूँटी से
उसे उतारें हम
एक साथ
पहन लें
(15 अप्रैल 1966)
हर रोज़, हर रोज़
वही वही वही
वही दिन आता है
कभी बादलों भरा
कभी चितकबरा,
कभी गेंदे की फुलवारी-सा
वही दिन आता है
सूरज की खूँटी से
उसे उतारें हम
एक साथ
पहन लें
(15 अप्रैल 1966)