Last modified on 23 अगस्त 2018, at 21:31

हिज्र की लम्बी रात का ख़ौफ़ निकल जाये / शहरयार

हिज्र की लम्बी रात का ख़ौफ़ निकल जाये
आंखों पर फिर नींद का जादू चल जाये

बड़ी भयानक साअत आने वाली है
आओ जतन कर देखें, शायद टल जाये

रौशन तो कर देना लौ सरगोशी की
जब मेरी आवाज़ का साया ढल जाये

मैं फिर काग़ज़ की कश्ती पर आता हूँ
दरिया से कहला दो ज़रा सम्भल जाये

या मैं सोचूं कुछ भी न उसके बारे में
या ऐसा हो दुनिया और बदल जाये

जितनी प्यास है उससे ज़ियादा पानी हो
मुमकिन है ऐ काश ये ख़तरा टल जाये।