‘मधुप’ जीक पुण्यस्मृतिमे / शम्भुनाथ मिश्र
‘हम जेबै कुशेश्वर भोर’ मुदित भय गाबी
हे हमर पूज्य! पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी
जे माइक वाणी रक्षा हित व्रत ठनलनि
जे फिल्मी धुन रचि गीत समक्ष परसलनि
हे श्रेष्ठ! अहँक काव्यक रससँ हम
अनको हृदय जुड़ाबी,
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
अहँ ‘झांकार’क रचना कय झंकृत कयलहुँ
आ ‘शतदल’ लय साहित्य अलंकृत कयलहुँ
हे कविवर! ‘राधा-विरहक’ पद पढ़ि
हम सब ज्ञान बढ़ाबी,
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
अहँ स्वयं चुप्प रहि सबकेँ मन चौंकौलहुँ
आ ‘द्वादशी’ क पारण सबकेँ करबौलहुँ
हे वरेण्य! अहँ ‘सप्तशती’ मे
नीतिक बाट देखाबी
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
रचि विविध प्रकारक काव्य
ककर तन-मन हर्षित नहि कयलहुँ
जे आयल अहँक समीप सभक प्रति
स्नेह प्रदर्शित कयलहुँ
हे महापुरुष! ‘प्रेरणा-पुंज’मे
बीतल बात सुनाबी,
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
अहँ शोभित कयलहुँ मिथिलाकेँ
आ कवि चूड़ामणि बनलहुँ
तेँ मधु संचय कऽ अपनाकेँ
मधुपक श्रेणीमे अनलहुँ
हे जन-जन कंठक हार!
चरणमे प्रतिदिन माथ झुकाबी
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
अहँ जीवन भरि पद्ये लीखब से ठानल
आ अलंकारकेँ काव्यक हितमे मानल
यमकक झमक मधुर रस बोरल
श्लेषक चमक देखाबी,
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।
अहँ अतुकान्तोमे गति यति कतहु न छोड़ल
लिखि ‘घसल अठन्नी’ कलम दुखी दिस मोड़ल
हे करुण रस सम्राट!
स्मरणमे श्रद्धा सुमन चढ़ाबी,
पुण्यस्मृति अहिँक मनाबी।