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नदी नहीं हो सकती आदमी / केदारनाथ अग्रवाल

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नदी नहीं हो सकती
आदमी
न आदमी
हो सकता है नदी
अब भी आदमी अभी आदमी है
नदी अब भी नदी है
बदला जमाना नहीं बदला
न प्रकृति बदली
न पुरुष
बदला
बदला परिवेश
यों नहीं बदला
कि आदमी और नदी
एक हों
अनस्तित्व में।

रचनाकाल: २९-१०-१९६७