Last modified on 26 जनवरी 2011, at 13:50

अब रिवायात से हटकर देखो / चाँद शुक्ला हदियाबादी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 26 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चाँद हादियाबादी }} {{KKCatGhazal}} <poem> तुम् रिवायात से हटक…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम् रिवायात से हटकर देखो
अपने घूँघट को पलटकर देखो
 
दोस्तों से तो गले मिलते हो
दुश्मनों से भी लिपट कर देखो

उतनी फैलाओ कि तन ढँक जाए
अपनी चादर में सिमट कर देखो
 
स्वर्ग के ढोल सुहाने सपने
पहले दुनिया से निपट कर देखो
 
और फैले तो बिखर जाओगे
’चाँद’ की तरह भी घट कर देखो