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ज़िंदगी के मायने हम पूछते / कुमार रवींद्र

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ज़िंदगी के मायने हम पूछते
प्रश्न ऐसे, लोग हैं कम पूछते
 
काश, लड़की की, उधर जो है खड़ी
आँख क्यों हो रही है नम, पूछते
 
संत होते तो उन्हीं से आज हम
क्यों जला कल रात आश्रम, पूछते
 
ग़र हमें मिलता शहर लखनऊ तो
गोमती क्यों हुई बेदम, पूछते
 
साधु असली अगर होते, तभी तो
क्यों अपावन हुआ संगम, पूछते