Last modified on 3 सितम्बर 2012, at 11:08

अब तो अजपा जपु मन मेरे / मलूकदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 3 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = मलूकदास }}{{KKCatKavita}} <poem> अब तो अजपा जपु ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अब तो अजपा जपु मन मेरे .
सुर नर असुर टहलुआ जाके मुनि गंधर्व हैं जाके चेरे.
दस औतार देखि मत भूलौ, ऐसे रूप घनेरे.
अलख पुरुष के हाथ बिकने जब तैं नैननि हेरे .
कह मलूक तू चेत अचेता काल न आवै नेरे .
नाम हमारा खाक है, हम खाकी बंदे .
खाकहि से पैदा किये अति गाफिल गंदे .