Last modified on 13 अक्टूबर 2007, at 01:22

केवल एक बात थी / कीर्ति चौधरी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:22, 13 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कीर्ति चौधरी }} केवल एक बात थी कितनी आवृत्ति विविध रू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

केवल एक बात थी

कितनी आवृत्ति

विविध रूप में करके तुमसे कही


फिर भी हर क्षण

कह लेने के बाद

कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही


उमग-उमग भावों की

सरिता यों अनचाहे

शब्द-कूल से परे सदा ही बही


सागर मेरे ! फिर भी

इसकी सीमा-परिणति

सदा तुम्हीं ने भुज भर गही, गही ।