Last modified on 28 अगस्त 2013, at 00:52

मुहाने पर नदी और समुद्र-7 / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:52, 28 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अष्‍टभुजा शुक्‍ल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुहाने पर
नदी, नदी नहीं रहती
समुद्र, समुद्र नहीं रहता
दोनों मिलकर
बनाते हैं
पानी की एक महा कलछुल

पर कोई ठठेर है पहाड़ी
सात समुन्दर पार
जो लगाता रहता है रोज़
इसकी बोली