Last modified on 31 अगस्त 2013, at 13:17

स्मृतियाँ- 11 / विजया सती

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 31 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजया सती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोए हुए को जगाना चाहिए - कहा था अपने आपसे
जाग उठा सागर अबाध एक उस दिन
आश्चर्य कि वह खारा भी नहीं था!