Last modified on 21 सितम्बर 2013, at 12:29

छापक पेड़ छिउलिया,त पतवन धन बन हो

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 21 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छापक पेड़ छिउलिया त पतवन धन बन हो
ताहि तर ठाढ़ हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो
चरतहीं चरत हरिनवा त हरिनी से पूछेले हो
हरिनी! की तोर चरहा झुरान कि पानी बिनु मुरझेलू हो
नाहीं मोर चरहा झुरान ना पानी बिनु मुरझींले हो
हरिना आजु राजा के छठिहार तोहे मारि डरिहें हो
मचियहीं बइठली कोसिला रानी, हरिनी अरज करे हो
रानी! मसुआ तो सींझेला रसोइया खलरिया हमें दिहितू न हो
पेड़वा से टांगबी खलरिया त मनवा समुझाइबि हो
रानी हिरि-फिरि देखबि खलरिया जनुक हरिना जिअतहिं हो
जाहू! हरिनी घर अपना खलरिया ना देइबि हो
हरिनी खलरी के खंझड़ी मढ़ाइबि राम मोरा खेलिहें नू हो
जब-जब बाजेला खंजड़िया सबद सुनि अहंकेली हो
हरिनी ठाढ़ि ढेकुलिया के नीचे हरिन बिसूरेली हो