Last modified on 4 अप्रैल 2014, at 16:06

नास्तिकों की भाषा -५ / प्रेमचन्द गांधी

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 4 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमचन्द गांधी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झूठ जैसा शब्द
नहीं है हमारे पास
सहस्रों दिशाएं हैं
सत्य की राह में जाने वाली
सारी की सारी शुभ
अपशकुन जैसी कोई धारणा
नहीं रही हमारे यहां
अशुभ और अपशकुन तो हमें माना गया.