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सुणजो हो म्हारा सगुण साहेब जी / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सुणजो हो म्हारा सगुण साहेब जी,
म्हारा पियर पत्रिका भेज जो।
एक आई गयो मेहलो न भीगी गयो कागद,
गोरी को संदेशो रही गयो।।
हुई गई रे वीरा म्हारा मण्डप की बिरियां,
सासूजी मसलो बोलिया।
परसो न हो बहुवर मुट्ठीभर चोखा, ऊपर मुट्ठी खांड की।।
हुई गई रे वीरा म्हारा मण्डप खऽ वार,
नणंदजी मसलो बोलिया।
एक पेरो न हो भावज दक्षिण रो चीर,
अंगिया जो, जड़ाव की।।
एक बेडुलो लई न पनघट चाली,
बेडुलो जो धरियो सरवर पाळ।
चोमळ टांगी चम्पा डाळ धमकी रऽ रे वीरजी की गाड़िला।।
घमकी नऽ रे घूँघर माळ
एक झपकी नऽ रे म्हारा वीराजी की पाग,
चमक्यो रे भावजजी रो चूड़ीलो।।
एक झटपट हो गोर घर खऽ आई,
विराजी खऽ दिया समझाई न।
एक वीराजी नऽ हो भेज्यो बहण खऽ संदेशो,
केतरीक लागऽ पेरावणी।।
ससरा खऽ रे वीरा म्हारा सेलो नऽ पाग,
सासू खऽ पोयचो पेरावजो।
जेठ खऽ रे वीरा म्हारा सेळो नऽ पाग,
जेठाणी खऽ चूनर पेरावजो।।
देवर खऽ रे वीरा म्हारा सेळो नऽ पाग,
देराणी खऽ चूनर पेरावजो।
एक नणंद खऽ दक्षिणा रो चीर।।
बौणई खऽ रे वीरा म्हारा पांचई कपड़ा,
बहण खऽ पेळो पेरावजो।
एक भाणेज खऽ हो अंगो नऽ टोपी,
पड़ोसेण खऽ कापड़ो देवाड़जो।।
जात खऽ रे वीरा म्हारा मुट्ठी भर चांवल,
गांव मंऽ तमोल बटाड़जो।
भली करी रे म्हारा माड़ी का जाया,
सासू नणंद मंऽ करऽ उजळई।