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तदा तपति मनः / कौशल तिवारी

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आदिवसं भौतिकसुखेषु विचरणं कृत्वा,
मुकुरे शुक्लतां पश्यामि तदा तपति मनः॥
दृढपरिश्रमे कृतेऽपि विचित्रे संसारे,
नियत्याः क्रीडां पश्यामि तदा तपति मनः॥
भास्वराऽट्टालिकानां चाकचक्यं दृष्ट्वा,
गृहमूले भिदां पश्यामि तदा तपति मनः॥
येषां स्थितिः कुटुम्बे मस्तकस्थानीया,
तान् वृद्धाश्रमे पश्यामि तदा तपति मनः॥
नगरे चतुष्पथि राष्ट्रभक्तानां प्रतिमासु,
पुरीषं धूलींच पश्यामि तदा तपति मनः॥