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जसोदा तेरे लाला ने माटी खाई / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जसोदा सुन माई, तेरे लाला ने माटी खाई॥ टेक
अद्भुत खेल सखन संग खैल्यौ, इतनौ सौ माटी को डेल्यौ
तुरत श्याम ने मुख से मेल्यौ, जानै गटक-गटक गटकाई॥ 1॥
माखन कू कबहूँ ना नाटी, क्यों लाला तैनें खाई माटी
धमकावै जसुदा लै साँटी, जाय नेंक दया नहिं आई॥ 2॥
ऐसौ स्वाद नांय माखन में, नाँय मिश्री मेवा दाखन में
जो रस ब्रजरजके चाखन में, जानें भुक्ति को मुक्ति कराई॥ 3॥
मुख के माँहि आँगुरी मेली, निकर परी माँटी की डेली
भीर भई सखियन की भेली, जाय देखें लोग लुगाई॥ 4॥
मोहन कौ म्हौड़ौ फरवायौ, तीन लोग वैभव दरसायौ
जब विश्वास जसोदाए आयौ, ये तो पूरन ब्रह्म कन्हाई॥ 5॥
जा रजकू सुरनर मुनि तरसें, धन्यभाग्य जो नितप्रति परसैं,
जिनकी लगन लगी होय हरसैं, कहें ‘घासीराम’ सुनाई॥ 6॥