Last modified on 27 मई 2016, at 03:22

शरद-खंजन फिरै / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:22, 27 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=ऋतुरं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शरद-खंजन फिरै
गल्ला सें गल्ला मिलीकेॅ दुन्हू
की-की गलगल करै।

धानोॅ में ढुकलोॅ की मारै छै गपसप
निकली पोखरिया में गोड़ करै छपछप
कमलोॅ पर फुदकै कोय कोय्यो डरै
शरद-खंजन फिरै।

सारस केॅ दूषनें छै कारण्डव भोरे
जानी है-हंसें की पानी थपकोरै
बगुलाँ लै चुटकी-कोय कत्तो जरै
शरद-खंजन फिरै।

धोआ धोती रङ दिन राती पटोरी
बान्है छं कौनै ई जादू के डोरी
मोहिनी के मन्तर के धेनू चरै
शरद-खंजन फिरै।