Last modified on 17 मार्च 2017, at 11:47

मिलन-स्थल: 2 / विष्णुचन्द्र शर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 17 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुचन्द्र शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोचने से
नीम के दरख्त के पास
नहीं लगा था शहतूत का पौधा।
आज मेरे घर के बाहर
दोनों ने घनी छाया दी है
ठेले पर आम बेचने वालों को।
कबाड़ी को, जो पुराने माल को खरीदता है
या मोबाइल पर आती है
प्रेमी से मिलने
लड़कियाँ और मिलन-स्थल वाकई
प्रेम का पड़ाव बन जाता है।
घनी छाया से बचा लेते हैं
शहतूत और नीम
उन्हें 41 डिग्री गर्मी से।
सिर्फ शेरू(पालतू कुत्ता) को एतराज़ है
यहीं क्यों खड़े रहते हैं लोगबाग!
वह अपनी आज़ादी के लिए
लगातार भौंकता है
कभी-कभी लड़कियाँ हँसती हैं
इस अहिंसक नाराज़गी पर।
कभी-कभी स्कूटरों का जमघट
मेरी लिखने की तल्लीनता को भंग कर...
फिर भी शहतूत और नीम की घनी छाँह
उन्हें सकून देती है।