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कवन के ऐँगना अररी गाछ हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

लड़की के पिता के आँगन में मोतियों से लदे पेड़ को देख भौंरा<ref>दुलहा</ref> रात-दिन उन्मत्त होकर चक्कर लगाने लगा। इसकी शिकायत उसके पिता से की गई। उसने कहा- ‘अच्छा, अब मैं खेत की कौनी को कटवा दूँगा, जिसमें छिपी हुई मुनिया चिड़िया को पकड़ मँगाऊँगा और उसे बड़े से सोने के पिजड़ें में परदा लगवाकर रख दूँगा। उसी में अपने लाड़ले बेटे को भी बंद कर दूँगा, जिससे शिकायत नहीं सुननी पड़ेगी।’

इस गीत में बहुत ही सटीक रूपक बाँधा गया है।

कवन के ऐँगना<ref>आँगन में</ref> अररी<ref>अंडी; एरंड</ref> गाछ हे, मोतिया झबरी<ref>फूल-फल से लद जाना</ref> गेलअ हे।
बाबा के एँगना अररी गाछ हे, मोतिया झबरी गेलअ हे॥1॥
कवन के भँवरा<ref>भौंरा</ref> बैमत<ref>पागल</ref> भेलअ<ref>हो गया</ref>, दिन सहर<ref>शहर</ref> बूले<ref>घूमता है</ref>, राति नगर बूले हे।
सभा बैठल छेलअ<ref>है</ref> बाबा बरैता<ref>श्रेष्ठ</ref>, परि गेलअ<ref>पड़ गया</ref> हे बाबा उलहनअ हे।
सभा बेठल छेलअ दादा बरैता, परि गेलअ हे दादा उलहनअ<ref>उलाहना</ref> हे॥2॥
खेतऽ केरऽ<ref>का</ref> कौनियाँ<ref>कौनी; एक कदन्न, जिसकी बाल बाजड़े की तरह होती है और दाने छोटे-छोटे होते हैं</ref> कटाइ<ref>कटवा दूँगा</ref>, देबअ, मुनियाँ<ref>छोटी चिड़िया, लालमुनिया, जो कौनी खाती है</ref> बझाइ<ref>फँसा दूँगा</ref> देबअ हे।
सोना केरऽ पिंजड़ा गढ़ाइ देबअ, रूपा केरऽ झपनी<ref>ढक्कन</ref> लगाइ देबअ हे।
ओहिं झाँपे<ref>ढक्कन से</ref>झाँपबअ<ref>ढक दूँगा</ref> हमैं कवन बेटा, छुटि जैतौंन<ref>जायगा</ref> उलहनअ हे॥3॥

शब्दार्थ
<references/>