Last modified on 12 मई 2017, at 16:11

रात के तीसरे पहर का नज़ारा / दिनेश जुगरान

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:11, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ शब्दों में ही
गुज़र गया पूरा दिन
और चाँद
लड़ता रहा रात भर
पास के कंटीले तारों से
और बादलों से माँगता रहा
सिर छुपाने की जगह
हवाओं में था
उखड़ी हुई साँसों का शोर
और डरे हुए भयभीत पत्ते
चुपचाप
एक टूटे पुल के नीचे
सहमे
देखते बन्द आँखों से
रात के तीसरे पहर का नज़ारा