Last modified on 12 मई 2017, at 16:15

बिना छायावाले वृक्षों की कतार / दिनेश जुगरान

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 12 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश जुगरान |अनुवादक= |संग्रह=इन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मौसम के जब
बदलते हैं तेवर
पेड़ सिर झुकाकर
दिखते हैं
मातम में
चिड़िया नहीं बैठती
उनकी टहनियों पर
हवा भी नहीं हिलाती
पत्तियों को
और कोई राहगीन भी नहीं बैठता
उसके नीचे

क्या हुआ अचानक
रुख कैसे गए बदल

कल ही तो जब मौसम
था खु़शनुमा
प्रेमी बैठते थे
पेड़ के नीचे
और कुछ
लिपट कर रोते थे
गले लगाकर उसके तने को

सोचता है
आँख मिल जाए किसी
गुज़रते राहगीर से
तो पूछे
कि मौसम बदलने से
क्यों हो गया है
इतना अपरिचित
और अकेला

पेड़ के पास
कोई भी
कठोर शब्द
कहने को नहीं हैं

नए मौसमों के
नए पेड़ उग आए हैं
अचानक चारों ओर
पनपे हैं जो
सूखी आँधी में

बिना छायावाले वृक्षों की
कतार लगी हुई है