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ओळ्यूं : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’

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ओळ्यूं कोई
सबक नीं है
किणीं पोथी रा
काळा आखर ज्यूं
जका बांच-बांच
ऊभी करल्यूं पड़तख
अदीठ होंवती नै
दीठ रै साम्हीं!

ओळ्यूं तो
रगत है
रगां में बैंवतो
जको मतै ई ढूकै
भेजै रै पड़
अर कोरै
थांरो उणियारो!