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तुम्हारे लिये...तुम्हारे आने से पहले / स्वाति मेलकानी

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मेरे बच्चे!
तुम जो
बीज रूप में
पल रहे हो मेरे भीतर,
तुम,
वृक्ष बनने की
अपनी सभी सम्भावनाओं को
समझने से पहले
जानना अपनी जमीन की जरूरतों को।
जब तुम
पहली बार आओगे
तो मत चौंकना आसमान देखकर।
तुम्हारी मासूम आँखे
चौंधिया सकती हैं
त्वरित प्रकाश से।
धीरे-धीरे
जमीन को देखकर
खोलना आँखें...
तभी तुम देख पाओगे
उस अनन्त विस्तार को
जो पाताल से लेकर
अंतरिक्ष तक फैला है।
कोशिश करना
कि तुम्हारी विस्मित
और जिज्ञासु आँखें
हमेशा ऐसी ही बनी रहें
और न डूबें
सतह पर तैरते ज्ञान में।...
हो सके तो याद रखना
कि किनारे के पानी में
पैर छपछपाने से
सुख तो मिलता है
पर
महासागर के
दुःख भी
विराट होते हैं
और
इस विराटता में उतरना
मूर्खता नहीं
बल्कि साहस है।...
मुझे पता है
कि तुम जल्द ही आओगे
इस खूबसूरत दुनिया में।
हो सके तो
इसे और खूबसूरत बनाना।
शायद यहाँ आने का
यही एक मकसद हो सकता है।...
अब तक तुम्हारी माँ
बस इतना ही जान पाई है।
हो सके तो
उसे और बताना।
हो सके तो
उसे और जिलाना।