Last modified on 20 अगस्त 2018, at 17:54

शमए उल्फ़त जला गया कोई / ईश्वरदत्त अंजुम

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 20 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वरदत्त अंजुम |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
शमए उल्फ़त जला गया कोई
तीरगी सब मिटा गया कोई

मेरी हर बात अनसुनी कर के
बात अपनी सुना गया कोई

दिल में नज़रों की राह से आकर
सिलसिला इक बना गया कोई

उसकी चाहता में थी तपिश इतनी
दिल का दामन जला गया कोई

वक़्ते-रुख़्सत बहा के कुछ आंसू
आज हम को रुला गया कोई

दिल सुलगता है आज भी अंजुम
आग ऐसी लगा गया कोई।