भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द दिल मे दबाये हुए हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:03, 3 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दर्द दिल में दबाए हुए हैं ।
लग रहा चोट खाए हुए हैं।।
यूँ तो हँसना हुआ गैर मुमकिन
लब मगर मुस्कुराए हुए हैं।।
बोझ ढोना न आसान होता
बोझ ग़म का उठाए हुए हैं।।
बाँट कर दर्द वो दूसरों का
दर्द अपना भुलाए हुए हैं।।
देह का घर हमारा हुआ कब
फिर भी कितना सजाए हुए हैं।।
देख सकते नहीं हैं जहाँ को
दीप फिर भी जलाए हुए हैं।।
डूबने का नहीं डर है कोई
वो जो चप्पू चलाए हुए हैं।।

