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चिंता छोड़ बिहान के / सिलसिला / रणजीत दुधु

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हँसऽ खेलऽ धनिया चिंता छोड़ऽ बिहान के।
के जाने हे कल्हे की होतय जहान के।

जीवन के एको पल न´ केकरो बस के,
चाहियो के न´ होतो रहवा तरस के,
कोय न´ बदल सकऽ हे विधि के विधन के,
हँसऽ खेलऽ धनिया चिंता छोड़ऽ बिहान के।

जइते बीतो जिनगी बइसे हँस बितावऽ
हमरा ढेरो कमी हे मन में न´ लावऽ,
कतनो कोय कुछ बोलो न´ खोलऽ जुबान के
हँसऽ खेलऽ धनिया चिंता छोड़ऽ बिहान के।

फेरू अबरी छारवो हम टुटली मड़इया के
पीहा तो दुधवा विआय दा बुढ़िया गइया के
बाल बच्चा हो जीअऽ एकरे धन मान के
हँसऽ खेलऽ धनिया चिंता छोड़ऽ बिहान के।