भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अम्मा जी / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:17, 6 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजनाथ श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
साथ हमारे
अब भी रहतीं अम्मा जी की
सभी दुआएँ
मुझे लगा कल
खड़ीं रात में
फिर कजरौटा पार रहीं
और दिये की लौ में दुर्दिन
सारे घर के जार रहीं
नजर किसी की
लगे न घर को टाल रहीं हैं
सभी बलाएँ
हमें लगा कल
भिनसारे में
जगकर गेह बुहार रहीं
चूम-चूम कर मेरा माथा
अम्मा सुबह दुलार रहीं
मेरे आगे
अपने दुख को अम्मा रहतीं
सदा छिपाएँ
मेरे पढ़ने
के खातिर ही
माँ ने कंगन बेंच दिये
जब तक जिंदा अम्मा घर में
पूरा घर है बसा हिये
अब भी उनके
निर्गुन गातीं ये रसवंती
मलय हवाएँ

