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जीवन क्या है / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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तुमने पूछा
जीवन क्या है
उपन्यास से बड़ी कथा
भरें कुलाँचें
इस उपवन में
सुख-दुख के मृगछौने
यूकेलिप्टस जैसे लम्बे
बोनसाई से बौने
धूप-छाँव में
बीत रहे दिन
लोग समझते इसे व्यथा
परियों वाली
दादी इसमें
अम्मा की हैं डाँटें
ताल ,तितलियाँ, वन-बँसवारी
झरबेरी के काँटे
संघर्षों की
कई ऋचाएँ
भूख-प्यास दिन रात यथा
शिव मंदिर के
मंत्र यहाँ हैं
महानगर की भीड़ें
कपट भरी वैभव गाथाएँ
पलें अमिय में कीड़े
थीं छोटी
सुख की इच्छाएँ
बड़े कलुष का साथ न था

