Last modified on 13 अगस्त 2019, at 19:44

एम० एफ़० हुसैन के लिए / कमल जीत चौधरी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:44, 13 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमल जीत चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे ईश्वर के पाँव में
चप्पल नहीं है
सिर पर मुकुट नहीं है

वह सिर से लेकर पाँव तक
शहर से लेकर गाँव तक नँगा है
पल-प्रतिपल खूँखार जानवर द्वारा
बलात्कृत है

सोने की खिड़कियों के परदे
उसे ढकने का बहुत प्रयास करते हैं
पर शराबी कविताएँ
उफनती सरिताएँ
किलों को ढहाती
ख़ून से लथपथ मेरे ईश्वर को
सामने ला देती हैं

उसे देखकर
कोई झण्डा
नीचा नहीं होता
      
मेरे ईश्वर को नँगा बलात्कृत
बनाने वाले
मेरे देश के ईश्वर को
कोई कठघरा नहीं घेरता ...

उधर जब पाँच सितारा होटल में
सभ्य पोशाक वाली दूसरे की पत्नी
तथाकथित ईश्वर की बाँहों में गाती है
इधर सड़क पर नग्नता
रेप ऑफ गॉड से लेकर सलत वाक तक
गौण मौलिकता दर्शाती है

नग्न होने पर
सच निगला नहीं जा सकता —
वह तो और भी पैना हो जाता है