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आस्था - 38 / हरबिन्दर सिंह गिल

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मेरी मजबूरी है
मैं अपनी माँ-मानवता
को किसी विशेष रूप में
आपके सामने
प्रस्तुत नहीं कर सकता
और बता सकूं
यह है स्वरूप
माँ-मानवता का
जिसे तुमने
पहचाना नहीं है।

काश कोई दिखा सकता
यह रूप होता है
आत्मा का
मैं कर चरण-वंदना
करता आग्रह
कर लो अपने में
विलीन मुझको
कुछ पल के लिये
और ले चलो
माँ-मानवता के पास
ताकि पोछ सकंू
बहते हुए आंसू
क्योंकि थक गया हूँ
सिसकियां सुनते-सुनते।