Last modified on 27 अगस्त 2022, at 01:32

कभी ग़ालिब कभी मोमिन / ज्ञानेन्द्र पाठक

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:32, 27 अगस्त 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्र पाठक |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी ग़ालिब कभी मोमिन कभी अख़्तर हूँ मैं
तू समझता है तेरी बज़्म का जोकर हूँ मैं

तू मुझे ढूंढ रहा है कहाँ रस्ते रस्ते
झांक कर देख तेरी रूह के भीतर हूँ मैं

तू है मूरख मुझे रद्दी में दबा रक्खा है
गौर से देख ले एग्ज़ाम का पेपर हूँ मैं

रात तन्हाई में बोली थी अना ये मुझसे
तेरी कमज़ोरी नहीं हूँ तेरा ज़ेवर हूँ मैं

तेरे नुक़सान पे नम हैं मेरी दोनों आँखें
वर्ना तू जानता है सब्र का अम्बर हूँ मैं

तू समझता है मुझे तूने दबा रक्खा है
मैं समझता हूँ तेरी नींव का पत्थर हूँ मैं