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सिंहासन के नीचे / तुलसी रमण

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फिर सजे लाशों के ढेर
धर्मक्षेत्रे
              कर्मक्षेत्रे

फूल-सी खिल उठी लाश भी
उस दोसाला बच्ची की
ज़रा भी ओस नहीं गिरी बीती रात
जाने किस तंत्र की साधना
करते रहे अघोरी

सुबह हुई
सबने जमकर पढ़े अखबार
किसी को भी
याद तक नहीं आये
बापू के तीन बंदर

लाशों के ढेर पर
सज़ा है सिंहासन
परिक्रमा कर रहे सिपह-सालार

सिंहासन पर मुस्करा रहा सम्राट
फूल झड़ते हैं उसके मुँह से
संवेदना और

शांति के
रक्त की बहती शतधातर
उसके चरणों में

बच्चों से बूढ़ों तक
औरत और मर्द का
तय पड़ा है मोल
एक अददः दस हजार

सिंहासन के ठीक नीचे
कैसी हँसी हँस रही

चिर-निद्रा में रक्त-रंजित

वह फूल-सी बच्ची
और माँ के सीने पर
पसार कर बिसात
बरगत की छाया में
खेल रहे शतरंज
माई के लाल

प्यादों के खून से
मात देने की चाल
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7 जुलाई 1987
लालड़ू हत्याकाँड की ख़बर पढकर।
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