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हाथ-1 / अशोक वाजपेयी

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यह सुख भी असह्य हो जाएगा
यह पूरे संसार का
जैसे एक फूल में सिमटकर
हाथ में आ जाना
यह एक तिनके का उड़ना
घोंसले का सपना बनकर
आकाश में
यह अंधेरे में
हाथ का हाथ में आकर
बरजना, झिझकना और
छूट जाना
यह एक रोशन-सी जगह का कौंधना
और खो जाना
एक दिन
यह सुख भी असह्य हो जाएगा।


रचनाकाल :1990