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सभी वैसा का वैसा है / शीन काफ़ निज़ाम

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सभी कुछ वैसे का वैसा है
कहीं कुछ भी नहीं बदला
दूर से आवाज़ देतीं
महराबें
ध्वजाएँ
नुकीले और गोल गुम्बद
गटर गूं करते कबूतर
टूटते बिखरते
किले की
मुन्ह्दम बुर्जियों प
उगी जली घास
बरसाती नाले की नाफ़ से निकलती
पगडण्डी पार
कोठार
गाडोलिये
लोहार
घना छित्नार
पेड़ पीपल का
उंघती अलसाई सड़क
मकान की
पहली मंज़िल की
ज़ंग ख़ुर्दा सलाख़ से मुंकसिम
मुन्हमिक ख़्वाब गूं खिड़की
टूटी गिरती शाम की रोशनी में
सैय्याल शरारों की
टेढ़ी मेढ़ी लकीरों को
देखती
चुपचाप
सूरज की पहली किरण
गडमड लकीरों को सुखाती