Last modified on 28 जुलाई 2010, at 21:45

आकाश छूती इमारतें बनाने वालों / सांवर दइया

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 28 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आकाश छूती इमारतें बनाने वालों। सदियों से मिले हमें फुटपाथ के ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आकाश छूती इमारतें बनाने वालों।
सदियों से मिले हमें फुटपाथ के हवाले!

यह किस्मत बदनाम हुई, आपकी बदौलत,
हाथों की हद से दूर रहते हैं निवाले।

यहां सभी आते हैं गंदगी में डूबने,
इस धधकते नरक से बाहर कौन निकाले?

ऐसे बढ़ती रही उल्फत अंधेरों से तो,
लाख तलाशें, न मिलेंगे कल यहां उजाले!

जैसे भी हो, बदलो बदतर होती सूरत,
खुदगर्ज जमाना, यह सवाल कौन उछाले?