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आज रात आई तुम, आज रात याद रहे / अमरेन्द्र

आज रात आई तुम, आज रात याद रहे
प्रेम जहाँ ठहरेगा, उसकी बुनियाद रहे।

बेला की मधुर-मधुर छाँवों में, पहरे में
रात-रात खूब खिली रातरानी घेरे में
अब तक दीवारों की नींव गुनगुनाती है
गन्धों के शासन का कायम आह्लाद रहे।

रात-रात बाँसुरी जो गूँजी थी सिरहाने
रोम-रोम और लगे कैसे थे मुस्काने
वे सब जो क्षण बीते, बीती उस रात में
जीवन भर खोने का मन में अवसाद रहे।

जीवन में आयेंगे सुन्दर क्षण, सुन्दर पल
सपनों के पंखों पर चढ़ कर सुनहरे कल
लेकिन जो हम-तुम में वाद और विवाद हुये
लोगों के गीतों में चलता सम्वाद रहे।