मुझे साफ़ पानी और
कम क्रूरता वाला शहर चाहिए जहाँ
अगर कोई हमला करने आए तो बचाने के लिए बग़ल वाला आए। वह न आए तो उसके बग़ल वाला आए और अगर वह भी न आए तो पूरे शहर में चर्चा शुरू हो जाए कि देखो आजकल आदमी को बचाने आदमी कैसे नहीं आता।
मुझे मॉल और दलाल वाला
स्मार्ट सिटी नहीं चाहिए
मुझे ऐसा शहर नहीं चाहिए जहाँ रामदास को मालूम हो कि रामदास की हत्या होगी।
जहाँ मारकेज़ के पात्र को पहले से ही न मालूम हो कि वह किस तरह मरेगा।
मुझे वह शहर नहीं चाहिए कि जहाँ आदमी को पहले से मालूम हो कि हिंसा होगी और दीनता टी.वी. पर दिखेगी और उसकी विपत्ति पर अख़बार में जो रिपोर्ट लिखी जाएगी उसकी हिंदी में भाषा नहीं होगी और करुणा नहीं होगी और अजनबीपन होगा और यह डर होगा कि उत्पीड़ित के अँधेरे पर लिखना अपराधी के उन्माद पर लिखना है।