कभी अपने से मुझको खुशनुमा होने नहीं दोगे
कि तुम मेहनत को अपनी राएगां होने नहीं दोगे
मुसाफ़िर की तरह आओगे इक दिन दिल-सराय में
रहोगे इस तरह इसको मकां होने नहीं दोगे
ज़मीं पर रेंगते रहने को तन्हा छोड़ जाओगे
किसी हालात में मुझको आसमां होने नहीं दोगे
मेरी कश्ती को जब मझधार में लाये तो कह देते
सिवा अपने किसी को बादबां होने नहीं दोगे
बहुत से मोड़ दानिस्ता नहीं आने दिये मैंने
कहानी को मेरी तुम दास्तां होने नहीं दोगे