कहीं से सदा प्यार के आ रहे हैं
कहाँ का सफ़र हैं कहाँ जा रहे हैं
बिखरने को बेताब क्यों दिल है मेरा
ख़यालों में भी वह गज़ब ढा रहे हैं
खिँजा आज अपनी बसर को बदल दे
कि अब हसरते मुझको बहका रहे हैं
आ जाओ कि होता नहीं ज़ब्त ख़ुश्बू
तुम्हारे तसब्वुर से शर्मा रहे हैं
नशा होश को ले उड़ा इस क़दर के
बड़े ’प्रेम’ से सबको सहला रहे हैं।