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घाव देकर जब गए बादाम / रमेश तैलंग

मूंगफलियों ने मरहम लगाया हमें
घाव दे कर गए जब बादाम.

कैसे भूलें, कहो, उनके अहसान को
जो हमारे कलेजे से लगके रहे,
जब अँधेरा घना छा गया सामने
बन के दीपक जो आँखों में जलते रहे

तंग गलियों ने रस्ता दिखाया हमें
राजपथ पर लगा जब भी जाम.

शोहरतें हमको भाईं न कंक्रीट की
गीली मिटटी ही मन में महकती रही,
काम आई फटी जेब अपनी बहुत
जब मुखौटे ये दुनिया बदलती रही,

मुश्किलों में इसी ने बचाया हमें,
मुफ्त बँटने लगे जब ईनाम.