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चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन / मोहम्मद इरशाद


चढ़ता हुआ दरिया भी उतर जायेगा इक दिन
और तेरा मुकद्दर भी सँवर जायेगा इक दिन

घर जल गया तो तूने ज़बाँ से ना कुछ कहा
ख़ामोश रहना तेरा असर लायेगा इक दिन

अब छोड़ कर जायेगा कहाँ अपना ही साया
तन्हा रहा तो ख़ुदा से भी डर जायेगा इक दिन

तू ना सँवार बार-बार अपने गुरूर को
ये आईना भी टूट बिखर जायेगा इक दिन

तुझ को जब देखने का शऊर आयेगा ‘इरशाद’
हर सिम्त बस ख़ुदा ही नज़र आयेगा इक दिन