Last modified on 31 जुलाई 2023, at 00:54

चाहत ज़मीन की थी मगर खाइयाँ मिलीं / राम नाथ बेख़बर

चाहत ज़मीन की थी मगर खाइयाँ मिलीं
महफ़िल में रहके भी मुझे तन्हाइयाँ मिलीं

कोयल कुहुक के ठूँठ पे मुझसे ये कह गई
हर बार मुझको भी कहाँ अमराइयाँ मिलीं

जब रौशनी थी साथ रहीं बनके हमसफ़र
कब तीरगी में अपनी भी परछाइयाँ मिलीं

बिटिया विदा हुई तो वो चौखट भी रो पड़ी
हर पल दुखों में डूबती अँगनाइयाँ मिलीं

उस बज़्म में वफ़ा की कोई बात क्या करे
जिसमें हर एक शख़्स को रुस्वाइयाँ मिलीं