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ज़ख्म जो दूसरों के भरता है / राम नाथ बेख़बर

ज़ख्म जो दूसरों के भरता है
शख़्स मरकर नहीं वो मरता है।

रंग लाती है शायरी अपनी
दर्द जब रूह तक उतरता है।

आती हैं मुश्किलें तो आ जाएं
हौंसला अब नहीं बिखरता है।

आँखें हो बन्द या खुली मेरी
अक्स तेरा सदा उभरता है।

चलते जाना तू अपनी मस्ती में
वक़्त बिलकुल नहीं ठहरता है।