Last modified on 6 मई 2016, at 16:52

नींद में कुंभकरन छै तेॅ जगाबौ तेॅ जरा / अमरेन्द्र

नींद में कुंभकरन छै तेॅ जगाबौ तेॅ जरा
बाघ हाँसै नै सकेॅ तोहीं हँसाबोॅ तेॅ जरा
दू चार घर केॅ भले तोहें मिटाबेॅ पारोॅ
सरफरोशी के जगलोॅ भाव मिटाबौ तेॅ जरा
जुल्म सें बचलै जे ओकरोॅ तेॅ यहाँ गिनती छै
जेकराकि मारी देलौ ओकरौ गिनाबौ तेॅ जरा
तोहें घरघुस्सा बिलारोॅ हेनोॅ मुटाबै छौ
आरो धमकाबै छौ हमराकि ‘मुटाबौ तेॅ जरा’
जानें घबड़ै लोॅ कैन्हें जी लगै छै आय हमरोॅ
फेरू अमरेन के कुछ शेर सुनाबौ तेॅ जरा

-28.7.86